मिल ही गया तुम्हें साथी जीवन की राह पर चलने के वास्ते,
छोड़ कर हमे अकेला तुमने भर दिये कांटो से रास्ते !!
गर सिखा जाते इन राहों पर तुम्हारे बिना चलना तो एहसान होता,
शायद एक दिन तुम्हारा अंश भी तुम पर महरबान होता !!
चले जाओ अब तुम दूर बहुत दूर, मेरी सोच से भी दूर ,
समझ जाऊँगी में कि तुम ही हो इस दुनिया मे सबसे ज्यादा मजबूर
!!
अब मेरी आँखें तुम्हारी राहें ना तकेंगी, ना ढूँढ़ेंगी
उस हवा मे तुम्हारी महक को,
ना देखेंगी उस चाँद को तुम्हारी आँखों से, ना बहेगा
नीर इन आँखों से तुम्हारी यादों का,
इंतज़ार की भी एक सीमा होती है, लो मुक्त
किया तुम्हें आज उस इंतज़ार से
बस न छोड़ना उस नए साथी को अकेला बीच राह मे, रखना बड़े
सुकून से बड़े प्यार से !!
****स्वरचित*****
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