Friday 8 July 2016

मिल ही गया तुम्हें साथी

मिल ही गया तुम्हें साथी जीवन की राह पर चलने के वास्ते,
छोड़ कर हमे अकेला तुमने भर दिये कांटो से रास्ते !!
गर सिखा जाते इन राहों पर तुम्हारे बिना चलना तो एहसान होता,
शायद एक दिन तुम्हारा अंश भी तुम पर महरबान होता !!
चले जाओ अब तुम दूर बहुत दूर, मेरी सोच से भी दूर ,
समझ जाऊँगी में कि तुम ही हो इस दुनिया मे सबसे ज्यादा मजबूर !!
अब मेरी आँखें तुम्हारी राहें ना तकेंगी, ना ढूँढ़ेंगी उस हवा मे तुम्हारी महक को,
ना देखेंगी उस चाँद को तुम्हारी आँखों से, ना बहेगा नीर इन आँखों से तुम्हारी यादों का,
इंतज़ार की भी एक सीमा होती है, लो मुक्त किया तुम्हें आज उस इंतज़ार से
बस न छोड़ना उस नए साथी को अकेला बीच राह मे, रखना बड़े सुकून से बड़े प्यार से !!

****स्वरचित*****

Wednesday 11 May 2016

विवाह की वर्षगांठ की बधाई



दिखने में साधारण हो, लोगों के लिए उदाहरण हो ।
मुझे जन्म नहीं दिया तो क्या ? मेरे जीने का एक कारण हो ॥
कारण हो मेरे होंठों पर खिलती हुई मुस्कान का ,
कारण हो इस दबी हुई प्रतिभा की नई उड़ान का,
प्रेम, भाव, सौन्दर्य का चोला, करते तुम दोनों धारण हो ।
इस कलयुग के राम और सीता, तुम ही नर और नारायण हो ॥




***स्वरचित***

Tuesday 8 March 2016

और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !


अजीब सी सुरबूराहट बेचैनी लिए मेरे मन मे उथल पुथल मचा रही थी,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !

तेरे भीतर का अंतर्द्वंद आँसू बन मेरी आँखों से एक झरने के जैसे बह निकला,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !

क्यूँ नफरत की सबने, क्यूँ खेला मुझसे, कई सवाल, जवाब पाने की चाह मे चल निकले,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !

तुम्हें जो भाए वही हैं रिश्ते, ना भाए वो किए पराये, कौनसे रिश्ते चले निभाने सोच रही थी जाने कब से,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !

अपने ही अंश को दूर किया, आत्मा से मुझे निकाल कर,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !

प्रेम की परिभाषा को बदला दोष मुझ पर डाल कर, उंदा खिलाड़ी हो दिलो के पता चला जब,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !

ऊंचे शिखरों पर बैठे हो, एह्म से आँखें अंधी हैं, धन की माया को ओढ़े हो,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !

ना देना व्यंग भरी मुस्कान मेरे शब्दों को, ये दर्द भरी कलम इन हाथों मे तुमने ही थमाई है,
फिर एक पल ठहरी, मन को समझाया, और क्या चाहिए, की तुम खुश हो !