Sunday 26 April 2015

कुदरत का कहर



हे ईश्वर, माफ करना तू मेरी बिलकुल समझ नहीं आ रहा है ।
अपने होने के अस्तित्व को तू दहशत फैलाकर बता रहा है ?
छत छीनी, धरातल डरा रहा है, तुझे और कुछ न मिला तो, आकाश बरसा रहा है ?
मानती हूँ के लोगो ने कुदरत से छेड़ छाड़ कर असंतुलन बनाया है,
पर तेरा भी, यूं झटके दे देकर संतुलन बनाने का तरीका कुछ रास नहीं आ रहा है ॥
मैंने फिर से तुझ पर एक प्रश्न चिन्ह लगाया है, तेरे खिलाफ अपनी लेखनी को चलाया है
यदि उस बचे हुए पशुपतिनाथ मंदिर मे तू है, तो रहम कर और स्थिति को संभाल,
क्यूकी कुदरत के कहर से बचाने वाला मुझे तेरे अलावा ओर कोई नजर नहीं आ रहा है ॥
अब तो आ जा, वरना लोगो का तुझ पर से विश्वास उठता जा रहा है ॥


****स्वरचित*******

Friday 24 April 2015

उड़ गयी है तेरी माँ की निंदिया

                          

               गीत  
                   (पार्थवी को समर्पित)  


बिटिया रानी याद मे तेरी, उड़ गयी है तेरी माँ की निंदिया ।
आ जाओ जल्दी अब ना सताओ, छोटे से कदमों से दौड़ी चली आ ॥




तू ही मेरी खिलती सुबह है ।
तू ही मेरी जलती शमा है ।
तू ही मेरा एक सहारा, तुझ संग ही कटूँगी जीवन सारा ॥
बिटिया रानी याद मे तेरी............

तेरा हँसना, तेरा रोना ।
तेरी बातें खेल खिलौना ।
आँसू मेरे अब ना रुकते, आ जा तेरी राहें तकते ॥
बिटिया रानी याद मे तेरी............

नन्हें से हाथों से बिंदिया हटाना ।
प्यारी सी बोली से मम्मी बुलाना ।
साथ है फिर भी क्यूँ साथ नहीं है, जीवन का कैसा ये पन्ना है कोरा ॥
बिटिया रानी याद मे तेरी............

मामा को तेरी चिंता सताये ।
मौसी अपने जैसा बताए ।
नाना नानी की तुम हो प्यारी, मेरी छोटी सी राजकुमारी ॥
बिटिया रानी याद मे तेरी............

तुझ बिन मुझको कुछ ना सुहाये, पल पल तेरी याद सताये ।
आ जाओ जल्दी अब ना सताओ, छोटे से कदमों से दौड़ी चली आ ॥
बिटिया रानी याद मे तेरी............

Self made melody and song click here to listen song.
****स्वरचित********

Saturday 18 April 2015

कभी कभी मुसकुराना अच्छा लगता है



कभी कभी अपने मे मुसकुराना अच्छा लगता है ।
जिंदगी की उलझनों को संयम से सुलझाना अच्छा लगता है ॥
आईने के सामने खड़े होकर, आँखों मे काजल लगाना अच्छा लगता है ।
जीवन के अँधेरों से उजालों मे आना अच्छा लगता है ॥
चुप थीं जो हाथों की हथेलियाँ, उनको चूड़ियों से सजाना अच्छा लगता है ।
भागते हुए सुरों से एक धुन बनाकर गुनगुनाना अच्छा लगता है ॥
माथे की लकीरों पर कुमकुम को लगाना अच्छा लगता है ।
हाथों से बालों को सहलाते हुए, अपने आप को बातों मे लगाना अच्छा लगता है ॥
बेटी की अठखेलियाँ देख अपने होठों पर हंसी को लाना अच्छा लगता है ।
धुंधली बेरंग यादों को रंगीन बनाना अच्छा लगता है ॥
सोये हुए सपनों को कभी कभी जगाना अच्छा लगता है ।
क्या करू ? रोक नहीं पाती अपने मन के भावों को लिखने से,
इसलिए मेरी कलम से उन्हें शब्दों मे सजना अच्छा लगता है ॥
कभी कभी अपने आप मे मुसकुराना अच्छा लगता है।


***** स्वरचित *******