हे ईश्वर, माफ करना तू मेरी बिलकुल समझ नहीं आ रहा है ।
अपने होने के अस्तित्व को तू दहशत फैलाकर बता रहा है ?
छत छीनी, धरातल डरा रहा है, तुझे और कुछ न मिला तो, आकाश बरसा रहा है ?
मानती हूँ के लोगो ने कुदरत से छेड़ छाड़ कर असंतुलन बनाया है,
पर तेरा भी, यूं झटके दे देकर संतुलन बनाने का तरीका कुछ रास नहीं आ रहा है ॥
मैंने फिर से तुझ पर एक प्रश्न चिन्ह लगाया है, तेरे खिलाफ अपनी लेखनी को चलाया है
यदि उस बचे हुए पशुपतिनाथ मंदिर मे तू है, तो रहम कर और स्थिति को संभाल,
क्यूकी कुदरत के कहर से बचाने वाला मुझे तेरे अलावा ओर कोई नजर नहीं आ रहा है ॥
अब तो आ जा, वरना लोगो का तुझ पर से विश्वास उठता जा रहा है ॥
****स्वरचित*******