मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी ।
पता ना चला कब तेरे आँचल से दूर हो गयी ॥
सुलाती थी प्यार भरी थपकियाँ देकर तू मुझको ।
अब नींद नहीं आती, ना जाने वो थपकियाँ कहाँ खो गयी ॥
तुझसे ही मेरे कर्म थे, तुझसे ही मेरी किस्मत थी ।
पर जब से तूने मुझे विदा किया, मेरी किस्मत तुझसे जुदा हो गयी ॥
तू है, तेरा साथ है, तेरा प्यार है पर ना जाने क्यूँ,
आज फिर उस बचपन वाले दुलार की प्यासी हो गयी ॥
मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी -----
पहले वक़्त थमा सा लगता था, क्योंकि मेरा वक़्त तेरे हिसाब से था ।
आज वक़्त की आँधी इतनी तेज है की, ना जाने उसमे में कहाँ गुम हो गयी ॥
मैं बेफिक्र सोना चाहती हूँ तेरी लोरी सुनकर इसलिए -----
ले चल उस बचपन वाले गलियारे मे फिर से मुझको ।
ना जाने कितनी साँसे बाकी है और कितनी पूरी हो गयी ॥
मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी -----
रोक ना मुझको लिखने से माँ, ये पढ्ना लिखना तूने ही तो सिखाया है ।
अब देख मेरी कलम से ही मेरी कविता पूरी हो गयी ॥
मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी -----
***** स्वरचित *******