Thursday 12 March 2015

मै गुड़िया अपनी माँ की



मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी ।

पता ना चला कब तेरे आँचल से दूर हो गयी ॥
सुलाती थी प्यार भरी थपकियाँ देकर तू मुझको ।
अब नींद नहीं आती, ना जाने वो थपकियाँ कहाँ खो गयी ॥

मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी -----

तुझसे ही मेरे कर्म थे, तुझसे ही मेरी किस्मत थी ।
पर जब से तूने मुझे विदा किया, मेरी किस्मत तुझसे जुदा हो गयी ॥
तू है, तेरा साथ है, तेरा प्यार है पर ना जाने क्यूँ,
आज फिर उस बचपन वाले दुलार की प्यासी हो गयी ॥

मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी -----

पहले वक़्त थमा सा लगता था, क्योंकि मेरा वक़्त तेरे हिसाब से था ।
आज वक़्त की आँधी इतनी तेज है की, ना जाने उसमे में कहाँ गुम हो गयी ॥
मैं बेफिक्र सोना चाहती हूँ तेरी लोरी सुनकर इसलिए -----
ले चल उस बचपन वाले गलियारे मे फिर से मुझको ।
ना जाने कितनी साँसे बाकी है और कितनी पूरी हो गयी ॥

मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी -----

रोक ना मुझको लिखने से माँ, ये पढ्ना लिखना तूने ही तो सिखाया है ।
अब देख मेरी कलम से ही मेरी कविता पूरी हो गयी ॥

मै गुड़िया अपनी माँ की ना जाने कब बड़ी हो गयी -----

***** स्वरचित *******

Tuesday 10 March 2015

बेटी

किस्मत वाले होते हैं वो जिनके बेटी होती है।
जो बेटी की कदर नही करते उनकी किस्मत एक दिन जरूर रोती है ।।
माँ बाप की चिंता में एक पल नही सोती है।
बेटी मेरे होठों की मुस्कान और आँखों की ज्योति है ।।
बेटी ओस की बूँद है और वही मेरे जीवन की धूप और छाया है।
बहुत खुशनसीब हूँ में जो मेने भी एक बेटी को पाया है ।।
खुदा मुझ पे बहुत मेहरबान है मेरी बेटी ही उसका दिया वरदान है 
वो ही मेरी आन बान शान है ।।
मेरी बेटी ही मेरा सम्मान है।।
बेटी ही मेरे सर का ताज है।
ख़ुशी से फूली नही समाती ये कहते हुए की ,
मुझे मेरी बेटी पे बड़ा नाज है ।।

**** स्वरचित मेरी बेटी को समर्पित******