Friday 26 October 2012

अनकही

इस दुनिया की भीड़ मे खुद को अकेला पाती हूँ !
कहने को है बहुत कुछ, पर कुछ ना कह पाती हूँ !!
सभी अपने स्वार्थ से ग्रस्त हैं ...
मेरा सारा जीवन अस्त व्यस्त है....
एक माँ बाप का साथ है , जो ना जाने कब छूट जाएगा !
एक अधूरा सा रिश्ता है , एक दिन वो भी टूट जाएगा !!

*****स्वरचित******

Thursday 19 January 2012

आज तू नहीं है

आज तू नहीं है,
पर तेरी महक जो आज भी मुझे आती है,
उसमे तेरे वजूद को पाती हूँ। 

आज तू नहीं है,
पर वो रास्ते जो कभी तूने मुझे दिखाए थे,
आज उन पर अकेले चल कर भी तेरे साथ को पाती हूँ। 

आज तू नहीं है,
पर मेरी एक मुस्कान जिस पर तू कभी मरता था,
आज अपने मुस्कुराने में तेरे ख्याल को पाती हूँ। 

आज तू नहीं है,
पर तेरा अंश जो मेरे पास है,
आज उसी अंश में तुझे देख पाती हूँ। 

आज तू नहीं है,
पर तेरे छवि जो मेरी आँखों में बसी है,
उसी छवि को याद कर तुझे सपनों में देख पाती हूँ।

आज तू नहीं है,
पर वो बातें जो तूने मुझसे कही थी,
उन्ही बातों को याद कर अपने आप को हँसता हुआ पाती हूँ। 

आज तू नहीं है,
पर मेरा दिल आज भी तुझे पुकारता है
आज इसी पुकार में तेरे होने के एहसास को पाती हूँ। 

आज तू नहीं है,
सिर्फ तेरी यादें हैं,
आज इन्ही यादों को याद कर यादों कि कलम चलाती हूँ। 

आज तू नहीं है,
पहले तू होकर भी नहीं था,
और कल तू होकर भी नहीं होगा,
बस यही सोचकर अपने को समझाती हूँ,
कठिन राहों पर अकेली निकल जाती हूँ,
और झूठे सपनो से जाग जाती हूँ।

Thursday 12 January 2012

स्वरचित प्रार्थना

- खुदा में तुझसे स्वरचित प्रार्थना कर रही हुँ,
अपनी भावनाओं को पंक्तियों में पिरोकर व्यक्त कर रही हूँ।
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लोग कहते है कि नारी ही नारी का शोषण करती है,
कौन कहता है के नारी नारी का शोषण करती है ?
नारी तो सबका भरण पोषण करती है।
परन्तु, मेरा घर जिसने उजाड़ा है वो एक नारी है ,
मेरे जीवन पर जिसने चलायी एक आरी है।
मेरी सारी खुशियां ना जाने कहाँ खो गयी ,
इसलिए में भी इस भीड़ में शामिल हो गयी,
के नारी सबका पोषण नहीं मात्र शोषण करती है।
- खुदा जिसने मेरी जड़ों को हिलाया है ,
मुझे पानी से नहीं आंसुओं से नहलाया है,
तू उसे कभी माफ़ ना करना,
वो नारी आज चैन से चादर ताने सो रही है,
और में और मेरी परछांई अपना अक्स पाने के लिए रो रही है।
वो मेरी ही नहीं मेरी बच्ची कि भी दोषी है ,
क्यों ऐसी नारी के पीछे दूसरी नारी अपना अक्स खोती है ?
ऐसी ही नारी के कारण माँ शब्द अपना अर्थ खो रहा है,
- खुदा उठ अब तो जाग,
तू भी क्या उसी कि भांति चादर ताने सो रहा है ?
में तुझसे स्वरचित प्रार्थना कर रही हुँ,
अपनी भावनाओं को पंक्तियों में पिरोकर व्यक्त कर रही हूँ।
- खुदा मेरे साथ न्याय कर,
ऐसी नारी को और भली नारियों की  भीड़ में शामिल ना कर।
जिससे में भी यही कह सकूँ , के नारी नारी का शोषण नहीं ,
भरण पोषण करती है। 

***स्वरचित******